महारानी लक्ष्मी बाई का सम्पूर्ण जीवन
जन्म
लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। उनकी माँ का नाम भागीरथी बाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था।
इनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। इनके पिता मोरोपंत मराठा बाजीराव की सेवा में थे। इनकी माता भागीरथी बाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ महिला थीं। बचपन में माँ के देहांत के बाद से घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे।
शिक्षा
मनु ने बचपन से ही शास्त्रों की शिक्षा के साथ-साथ शस्त्र चलाने एवं घुड़सवारी की शिक्षा भी ली।
सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु चार महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।
झाँसी का युद्ध
झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र था, जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती करके उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में भरपूर सहयोग दिया। झलकारी बाई जो लक्ष्मीबाई ने झलकारी बाई को अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया। झलकारी बाई लक्ष्मीबाई की हमशक्ल लगती थीं। 1857 के पड़ोसी राज्य ओरछा और दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया था। जिसे रानी लक्ष्मी बाई और उनकी बहादुर सेना ने सफलतापूर्वक विफल कर दिया।
1858 के जनवरी माह में ब्रिटेन की सेना ने झाँसी की ओर कूच किया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रिटेन की सेना ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया। परन्तु रानी लक्ष्मीबाई दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी। झाँसी से निकलने के बाद रानी तात्या टोपे से मिलीं। तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया।अली बहादुर जो बाजीराव प्रथम के वंशज थे, उन्होंने भी युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया था। रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें राखी भेजी थी इसलिए उन्होंने भी इस युद्ध में उनके साथ शामिल होकर राखी का मान रखा।
18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा के सराय में ब्रिटेन की सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई महज़ 29 वर्ष की आयु में वीरगति को प्राप्त हो गई। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रिटेन के जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक ख़तरनाक भी थी। महारानी लक्ष्मी बाई का सम्पूर्ण जीवन अद्भुत था।
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