अंधविश्वास मानवता का शत्रु है, इससे ऐसे बचें

अंधविश्वास (मानवता का शत्रु)

अंधविश्वास (मानवता का शत्रु)

भारत में अंधविश्वास की जड़ें बहुत गहरी हो चुकी हैं। आज जो मैं लिखने जा रहा हूँ उसका उद्देश्य किसी की भावना को ठेस पहुंचाना कतई नहीं है अपितु उन्हें ऐसी वास्तविकता से अवगत कराना है जिससे उनका मनुष्य रूप में जन्म लेना सार्थक सिद्ध हो। अंधविश्वास मानवता का सबसे प्रबल शत्रु है जिसने हर वर्ग को प्रभावित किया है। अंधविश्वास के वशीभूत मनुष्य अपनी स्वयं की योग्यता, कार्य कुशलता से पूर्ण रूप से न्याय नहीं कर पा रहा है। आदिकाल में मनुष्य का दायरा सीमित था इसलिए अंधविश्वासों की संख्या भी कम थी किन्तु जैसे जैसे मनुष्य का क्रिया क्षेत्र बढ़ रहा है अन्धविश्वास का जाल और अधिक तेज़ी फैलता जा रहा है। आज हर तरफ आडम्बरों का बोलबाला है। कभी अज्ञानतावश तो कभी किसी बड़े भय के चलते मनुष्य अंधविश्वास को स्वीकार रहा है।

अंधविश्वास से प्रकृति का विनाश

मनुष्य अपने स्वार्थ को साधने के लिए प्रकृति का विनाश किये जा रहा है यदि ऐसे में कोई प्राकृतिक आपदा आ रही है फिर चाहे वो बाढ़ आना हो, सूखा पड़ना हो, भूकम्प-चक्रवात आना हो या फिर किसी भयानक रोग से महामारी का फैलना हो, उसमें भी दैवीय प्रकोप को मानकर मनुष्य अपनी ग़लतियों को छुपाता फिर रहा है। इसमें तनिक भी संशय नहीं है कि ऐसा करके वह अपने पतन का रास्ता स्वयं प्रशस्त कर रहा है।

विज्ञान बनाम अंधविश्वास

इतिहास साक्षी है की सत्य को हमेशा सूली पर चढ़ाया जाता रहा है और असत्य सीना तान के राज सिंहासन पर विराजमान होता आया है। वर्तमान भी इससे अछूता नहीं रहा है। हिंसा का रास्ता अपनाकर कुछ राष्ट्र, कुछ संगठन, कुछ चंद लोग अपने आपको मानवता का रक्षक दिखाने में लगे हुए हैं। आज के परिवेश में यदि दुनिया में शांति स्थापित करनी है तो इसके लिए ज्ञान-विज्ञान, मान-सम्मान एवं विश्वबंधुत्व ही मात्र उपाय नज़र आता है। आज देश भूत-प्रेत, आत्मा-परमात्मा, भाग्य-भगवान्, स्वर्ग-नर्क, छुआ-छूत, जात-पात, जादू-टोना, ओझा-डायन जैसी तमाम कुरीतियों से ग्रसित है ऐसे में शांति की उम्मीद रखना बेईमानी है। इन कुरीतियों को समाप्त करने के लिए हमें लाठी-तलवार, बम-बारूद, तोप-टैंकर की ज़रूरत नहीं है, ज़रुरत है तो सिर्फ "तर्क की ताकत" की। यही वो औज़ार है जिससे बिना रक्तपात किये न सिर्फ अपने देश को बल्कि पूरी दुनिया को शांति एवं विश्वबंधुत्व का पाठ पढ़ाया जा सकता है।


आज मनुष्य के जीवन को अंधविश्वास के जाल ने ऐसा जकड़ रखा है जहाँ वह सिर्फ धर्म, भाग्य, भगवान्, आत्मा, पुनर्जन्म, शगुन-अपशगुन और मोक्ष के चक्कर में पड़ा रह कर जीवन जीने को मजबूर हो गया है। अंधविश्वास के इस जाल को ज्ञान रूपी कैंची से ही काटा जा सकता है। प्रतिवर्ष देश में अनेकों पवित्र स्नान होते हैं, उनमें स्नान करके यदि मनुष्य पवित्र हो जाता तो भारत कब का पाप-मुक्त हो चुका होता, देश में हत्या, लूट, बलात्कार, अत्याचार दिनों-दिन नहीं बढ़ता। तभी तो संत कबीर ने कहा है-

नहाये धोये क्या भला, मन का मैल ना जाए ।
मीन सदा जल में रहे, धोये गंध ना जाए ।।

आज का युग विज्ञान का युग है। हर बात को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचना और देखना चाहिए न कि भाग्य-भगवान् की इच्छा और रूढ़िवाद या किसी अन्य अंधविश्वास से जोड़कर देखना चाहिए। उदाहरण के तौर पर यदि कोई व्यक्ति आपसे ये कहता है कि उत्तर की दिशा में सिर रख के नहीं सोना चाहिए तो उसे ये बात वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर कहनी चाहिये न कि किसी अंधविश्वास के चलते लोगों में भय बढ़ाना चाहिए।

लेखक की आपसे ख़ास अपील

जिस तरह पाखंड और धर्मांधता में डूबे लोग विचार रखते हैं कि...
फला दिन में बाल कटिंग नहीं कराना चाहिए।
फला दिन बालों में तेल नहीं लगाना चाहिए।
फला दिन किसी के घर नहीं जाना चाहिए।
फला दिन घर वापसी नहीं करनी चाहिए।
फला दिन गाय को ये खिलाना चाहिए।
फला दिन कुत्ते को ये खिलाना चाहिए।
फला दिन बन्दर को वो खिलाना चाहिए।

मेरा उन पाखंडियों से ये प्रश्न है कि क्या  उन्हें ये भी पता है कि...

ऐसा कौन सा दिन है, जिस दिन बच्चा पैदा नहीं होना चाहिए?

या ऐसा कौन सा दिन है, जब कहीं पर पड़ा हुआ धन नहीं उठाना चाहिए?

या ऐसा कौन सा दिन है जब आदमी को मरना नहीं चाहिए?

क्या ऐसा भी कोई दिन है, जिस दिन कोई निर्मम हत्या नहीं होनी चाहिए?

क्या ऐसा भी कोई दिन है, जिस दिन बलात्कार नहीं होना चाहिए?

क्या ऐसा भी कोई दिन है, जिस दिन जाति/सम्प्रदाय के कारण किसी को पीटा न जाए।

डूब मरना चाहिए उन लोगों को जिन्होंने अपने स्वार्थवश ऐसे पाखंड को समाज में फैलाया। जिसमें एक भी मानव हित नजर नहीं आता।

मेरा सभी पाठकों से अनुरोध है कि आप समाज में फैले ऐसे पाखंड और धर्मान्धता पर थोड़ा चिन्तन मनन करें। ना कि आँखें मूंद कर बस इसको ढोते रहें। और यदि समझ आ जाए कि यह सब व्यर्थ है, तो लात मारिए ऐसे पाखंड को और साथ ही इसे फैलाने वाले पाखंडियों को।

पूरा लेख पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद। यदि आप भी अंधविश्वास के खिलाफ हैं तो हमें अपने विचार अथवा अपने अनुभव को कमेंट बॉक्स में ज़रूर लिखकर बताएं। आपके विचार वेबसाइट के मुख्य पृष्ठ पर अंकित कर हमें अति प्रसन्नता होगी।

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9 टिप्पणियाँ

  1. उत्तर
    1. मानव समाज में जो व्यक्ति कमजोर महसूस कर रहा है तो इसका मुख्य कारण अंधविश्वास के साथ साथ शिक्षा की कमी है।।
      इसके लिए मानव समाज को एक जनजाग्रित अभियान चलाना चाहिए ।।।

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