कबीर दास जी की कही बातें आज सही साबित हो रही हैं

कबीर दास का सम्पूर्ण जीवन

कबीर दास का सम्पूर्ण जीवन

जन्म
कबीर दास का जन्म

कबीर दास का जन्म कब और कहाँ हुआ था इसके बारे में इतिहासकारों के बीच मतभेद हैं। कबीर के जन्म स्थान के बारे में तीन मत सामने आते हैं...

पहला मत :- अधिकतर इतिहासकार मानते हैं कि कबीर का जन्म काशी (वाराणसी) में हुआ था। यह बात कबीर के दोहे से प्रकट होती है "काशी में परगट भये, रामानंद चेताये"

दूसरा मत :- एक प्रचलित कथा के अनुसार कबीर का जन्म 1440 ईसवी को गरीब विधवा ब्राह्मणी के यहाँ हुआ था। जिसे ऋषि रामानंद जी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था। विधवा ब्राह्मणी ने संसार की लोक-लाज के भय से नवजात शिशु को लहरतारा ताल के पास छोड़ दिया था।इसी कारण कबीर सांसारिक परम्पराओं को कोसते हुए नजर आते थे।

तीसरा मत :- एक कथा के अनुसार कबीर का पालन-पोषण नीरू और नीमा के यहाँ मुस्लिम परिवार में हुआ। नीरू को यह बच्चा लहरतारा ताल के पास मिला था। कबीर नीरू और नीमा की वास्तविक संतान थी या उन्होंने सिर्फ उनका पालन-पोषण किया इसके बारे में इतिहासकारों के अपने-अपने मत हैं।

बचपन
कबीर दास का बचपन

कबीर का बचपन मुश्किलों से भरा हुआ थाउनका पालन-पोषण बेहद ही गरीब परिवार में हुआ था। दिन भर भोजन की व्यवस्था करने के लिए कबीर को दर-दर भटकना पड़ता था। इसी कारण कबीर कभी किताबी शिक्षा नहीं ले सके। बचपन में उन्हें खेलों में किसी भी प्रकार शौक नहीं था

शिक्षा
कबीर दास की शिक्षा

गरीब माता-पिता इस स्थिति में नहीं थे कि कबीर को मदरसे में पढ़ा सकें। कबीर के जीवन पर उनके गुरु रामानंद जी के विचारों का गहरा असर रहा।कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे यह बात कबीर के इस दोहे से पता चलती है-"मसि कागद छूवो नहीं, कलम गही नहिं हाथ" उन्होंने स्वयं ग्रंथ नहीं लिखे, मुंह से बोले और उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया।

विवाह
कबीर दास का विवाह

कबीर दास का विवाह वनखेड़ी बैरागी की बेटी लोई के साथ हुआ था। उनकी दो संतानें थीं। उनके बेटे का नाम कमाल व बेटी का नाम कमाली था।

व्यक्तिगत जीवन
कबीर दास का व्यक्तिगत जीवन

कबीर ने दीक्षा प्राप्त करने के लिए गुरु के रूप में रामानंद जी को और ईश्वर के रूप में राम को अपनाया। कबीर "निर्गुण राम" के उपासक थे। उनके अनुसार ईश्वर को किसी नाम, रूप, गुण, काल आदि की सीमाओं में बांधा नहीं जा सकता। जो सारी सीमाओं से परे हैं और फिर भी सर्वत्र हैं, वही कबीर के "निर्गुण राम" हैं।


सामाजिक योगदान
कबीर दास का सामाजिक योगदान

जब भी भारत में धर्म, भाषा, संस्कृति की चर्चा होती है तो कबीर दास का नाम सबसे पहले आता है। उन्होंने अपने दोहों से भारतीय संस्कृति को दर्शाया। कबीर दास एक महान कवि होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने हिन्दू मुस्लिम में प्रेमभाव और सहिष्णुता को बढ़ावा दिया। भक्तिकाल के प्रमुख कवि होने के साथ ही महान उपदेशक भी थे। उन पर हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख तीन धर्मों का प्रभाव रहा। वे सूफी विचारधारा के निकट थे। साथ ही धार्मिक रीतिरिवाजों के प्रमुख आलोचक थे। धर्मों में वर्षों से चली आ रही कुप्रथाओं के विरोधी भी थे। उनके लिए मानवता ही सबसे बड़ा धर्म था।

मृत्यु
कबीर दास की मृत्यु

संत कबीर की मृत्यु सन 1518 ई. को मगहर में हुई थी। कबीर के अनुयायी हिन्दू और मुसलमान दोनों ही धर्मों में बराबर थे। इसलिए जब कबीर की मृत्यु हुई तब हिन्दू और मुसलमानों दोनों से अपने तरीकों से फूलों के रूप में उनका अंतिम संस्कार किया। कबीर के मृत्यु स्थान पर उनकी समाधी व मज़ार दोनों बनाई गयी हैं।


कबीर दास के दोहे
कबीर दास के दोहे
काल_करे_सो_आज_कर, आज_करे_सो_अब ।
पल_में_परलय_होएगी, बहुरि_करेगा_कब ।।
अर्थात
जो कल करना है उसे आज करो और जो आज करना है उसे अभी करो, कुछ ही समय में जीवन ख़त्म हो जायेगा फिर तुम क्या कर पाओगे 

पोथी_पढ़_पढ़_जग_मुआ, पंडित_भया_न_कोये ।
ढ़ाई_आखर_प्रेम_का, पढ़े_सो_पंडित_होये ॥
अर्थात
बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, किन्तु सभी विद्वान न हो सके। यदि कोई प्रेम के केवल ढाई अक्षर अर्थात प्रेम के वास्तविक रूप को पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।

जिन_खोजा_तिन_पाइया, गहरे_पानी_पैठ ।
मैं_बपुरा_बूड़न_डरा, रहा_किनारे_बैठ ॥
अर्थात
जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ पा ही लेते हैं जैसे कोई गोताखोर गहरे पानी में कुछ ले कर ही आता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के डर से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते।

तिनका_कबहुँ_ना_निन्दिए, जो_पाँवन_तर_होए ।
कबहुँ_उड़ी_आँखिन_पड़े, तो_पीर_घनेरी_होए ॥
अर्थात
एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। क्योंकि यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरा तो कितनी गहरी पीड़ा होती है।

साईं_अतना_दीजिए, जा_में_कुटुम्ब_समाये ।
मैं_भी_भूखा_ना_रहूँ, साधू_ना_भूखा_जाये ॥
अर्थात
हे परमात्मा ! तुम मुझे इतना ही दो कि जिसमे मेरा गुजारा चल जाये, मैं खुद भी अपना पेट पाल सकूँ और आने वाले मेहमानों को भी भोजन करा सकूँ।

बड़ा_हुआ_तो_क्या_हुआ, जइसे_पेड़_खजूर ।
पन्छी_को_छाया_नही, फल_लागैं_अति_दूर ॥
अर्थात
खजूर के पेड़ के समान बड़ा होने का क्या लाभ, जो ना ठीक से किसी को छाँव दे पाता है और न ही उसके फल आसानी से मिल पाते हैं।

जाति_ना_पूछो_साधू_की, पूछ_लीजिये_ज्ञान ।
मोल_करो_तलवार_का, पड़ा_रहन_दो_म्यान ॥
अर्थात
सज्जन व्यक्ति की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का।

दुख_में_सुमिरन_सब_करे, सुख_में_करे_न_कोये ।
जो_सुख_में_सुमिरन_करे, दुख_काहे_को_होये ॥
अर्थात
दुःख के समय तो सभी भगवान् को याद करते हैं पर सुख में कोई नहीं याद करता। यदि सुख में भी भगवान् को याद किया जाए तो दुःख हो ही क्यों। 

बुरा_जो_देखन_मैं_चला, बुरा_न_मिलिया_कोए ।
जो_दिल_खोजा_आपना, मुझसे_बुरा_न_कोए ॥
अर्थात
जब मैं इस संसार में बुराई खोजने निकला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।

ऐसी_वाणी_बोलिए, मन_का_आपा_खोए ।
औरन_को_शीतल_करे, आपहुं_शीतल_होए ॥
अर्थात
हमें ऐसी मधुर वाणी बोलनी चाहिए, जिससे दूसरों को शीतलता का अनुभव हो और साथ ही हमारा मन भी प्रसन्न हो उठे।

कबीर दास का सम्पूर्ण जीवन हमें एक बेहतर ज़िन्दगी जीना सिखाता है। पूरा लेख पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद। आप निश्चित रूप में एक अच्छे पाठक हैं। कबीर दास जी का जीवन अनुकरणीय है। इस लेख से सम्बंधित आपका कोई सुझाव हो तो हमें नीचे कॉमेंट बॉक्स में ज़रूर लिखें। पुनः धन्यवाद।

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