जलन की भावना से कैसे बचें
जलन और ईर्ष्या में अंतर
जलन और ईर्ष्या दोनों एक ही चीज़ नहीं हैं, परन्तु अक्सर लोगों को इन दोनों में भ्रम हो जाता है। जलन और ईर्ष्या के बीच के अंतर को जान लेना हमारे लिए अतिआवश्यक है। ईर्ष्या एक ऐसा शब्द है जो मानव के खुद के जीवन को तो उथल-पुथल करता ही है साथ ही दूसरों के जीवन में भी तबाही मचा देता है। अगर आप किसी को खुशी दे नहीं सकते तो किसी के सुख को देख कर जलना भी नहीं चाहिए।
ईर्ष्या क्यों और कैसे होती है
हम कई बार अपने मन में ईर्ष्या, जलन, क्रोध, नफरत आदि की भावना को उत्पन्न कर देते है और फिर उसके बाद में पछताते है। आखिर ये ईर्ष्या, जलन, क्रोध, नफरत आदि के भाव जन्म कहाँ से लेते है? क्या इनसें छुटकारा पाया जा सकता है? जानते हैं इससे बचने के उपायों के बारे में।
ईर्ष्या से बचने के उपाय
जब आप खुद अपनी चीजों से संतुष्ट नहीं हो पाते हैं, ईर्ष्या तभी से आप के भीतर प्रवेश करती है। ईर्ष्या ऐसी चीज़ है जो दूसरों को नहीं बल्कि खुद के जीवन को जलाती है। जो लोग आपसे ईर्ष्या करते हो उन व्यक्तियों पर कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसे व्यक्तियों के अंदर आप के प्रति सकारात्मक भाव नहीं हो सकते हैं।
ईर्ष्या बनाती है मज़ाक का पात्र
समाज में अक्सर ही यह देखने को मिलता है कि जब कोई व्यक्ति आगे बढ़ रहा हो अर्थात उसकी उन्नति हो रही है, तो कुछ ऐसे संकीर्ण मानसिकता के लोग उस बढ़ते व्यक्ति के रास्ते में कैसे दीवार खड़ी की जाए और कैसे समाज में उनका मज़ाक बनाया जाए और उसकी कामयाबियों को कैसे रोका जाए, इस सोच में लग जाते हैं, किन्तु ऐसे लोगों को ज्यादा कोई लाभ नहीं मिलता है, व्यर्थ में ही अपना समय नष्ट करते रहते हैं। आज के समय में बहुत कम लोग ऐसे देखने को मिलते हैं जो किसी की कामयाबी देख कर खुशी का अनभुव करते हैं।
ईर्ष्या रोकती है उन्नति के द्वार
यह सब को पता है की ईर्ष्या दूसरों को नहीं बल्कि खुद को जलाती है फिर भी लोग अपने अंदर ईर्ष्या की भावना रखते हैं जिसका प्रभाव उनकी रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ता है ऐसे में व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है और उसका व्यवहार लोगों के प्रति नकारात्मक होने लगता है। समाज भी ऐसे लोगों से दूरी बनाना शुरू कर देता है। ईर्ष्या से मनुष्य दूसरों का कुछ नहीं बिगाड़ पाता परन्तु अपने जीवन के सुख चैन को खो देता है क्योंकि जब हर समय वो दूसरों के बारे में ही सोचता रहेगा तो उसे अपनी उन्नति का समय ही कहाँ मिलेगा।
गलत भावना ईर्ष्या की जन्मदाता
हमें यह पता होना चाहिए कि ईर्ष्या हमारे मन का एक गुप्त भाव है, इससे बचने के लिए हमें सबसे पहले अपने भीतर से सभी नकारात्मक विचारों को बाहर निकालकर मन को शांत करना चाहिए। लोगों को सफलता कैसे मिल रही है, हमें इन बातों पर बिल्कुल भी ध्यान ना देकर अपनी सफलता सिद्ध करने के लिए अपनी चीजों के लिए सकारात्मक तरीके से प्रयासरत हो जाना चाहिए। जब तक हम ऐसा नहीं करेंगे तब तक हमें जीवन में सफलता नहीं मिलेगी और हम ईर्ष्या की आग में जलते जलते समाप्त हो जायेंगे।
ईर्ष्या छोड़िये, सफ़ल बनिए
ईर्ष्या से ग्रस्त व्यक्ति अपने लिए क्या सही है क्या गलत, इसका ज्ञान खो बैठता है। यह भी नहीं समझ पता कि उसे आगे कैसे बढ़ना है क्योकिं वो केवल दूसरों के बारे में ही सोचता रहता है कि वो कैसे हमसे आगे बढ़ रहा है। इंसान ईर्ष्या की आग में इतना जलने लगता है कि वह अपने जीवन का उद्देश्य ही भूल जाता है कि उसे भी अपने जीवन में सफल होना है।
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Jalan se insaan apna nuksaan krta h...
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने।
हटाएंVery nice Sir
जवाब देंहटाएंआपका धन्यवाद
हटाएंVeri nice jii
जवाब देंहटाएंThank you
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