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स्त्री का अपमान, आख़िर कब तक?

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स्त्री का अपमान क्यों? स्त्री युगों युगों से ही अपमान सहती आ रही है। कभी धर्म के नाम पर, कभी लोक लज्जा के नाम पर, कभी अधिकारों के नाम पर, तो कभी अपने अस्तित्व के नाम पर। आज जहां एक तरफ हम महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ युगों से चली आ रही कुप्रथाओं, किस्से कहानियों, तथाकथित रचनाकारों की रचनाओं का हवाला देके उन्हें अपमानित भी करते रहते हैं।इतिहास भरा पड़ा है ऐसे तमाम उदाहरणों से। उस समय की घटनाएं कहीं ना कहीं आज भी स्त्री की छवि को धूमिल करती आ रही हैं। अपमान किसी का भी हो, परिणाम हमेशा विध्वंसकारी होता है। ऐसे में इन रचनाओं और ऐसे रचनाकारों का त्याग कर देना ही सर्वथा उचित जान पड़ता है। यहां इतिहास की उन कुछ घटनाओं का ज़िक्र किया जा रहा है जब जब किसी स्त्री का अपमान हुआ है... दोहरा व्यवहार कब तक पहली बड़ी घटना जो महिलाओं को निर्वस्त्र करने की प्रेरणा देती है -  द्रौपदी चीरहरण दूसरी बड़ी घटना जो महिलाओं को जलाने की प्रेरणा देती है -  होलिका दहन तीसरी बड़ी घटना जो महिलाओं को मारने-पीटने और अपमानित करने की प्रेरणा देती है -  लक...

भगवान् बुद्ध जी का ज्ञान भी उन्हीं की तरह शुद्ध है

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भगवान् बुद्ध का सम्पूर्ण जीवन जन्म भगवान् बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के लुंबिनी नामक स्थान पर हुआ था। इनकी माँ महामाया का इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हो गया। जिसके बाद महाप्रजापती गौतमी ने इनका पालन पोषण किया। बालक को सिद्धार्थ नाम दिया गया। जिसका अर्थ है वह जिसका जन्म सिद्धी प्राप्ति के लिए हुआ हो। भगवान् बुद्ध का बचपन बचपन से ही बालक सिद्धार्थ दया और करुणा से भरे हुए थे। जिसका उनके जीवन की अनेकों घटनाओं से पता चलता है। घुड़दौड़ की प्रतियोगिता के दौरान घोड़े के मुँह से झाग निकलता देखते थे। घोड़े को थका जानकर वहीं रोक देते और जानबूझकर जीती बाजी हार जाते। खेल में सिद्धार्थ को खुद हारकर सामने वाले को जीतते देखना ज़्यादा पसंद था। वे किसी को हारकर दुःखी होते हुए नहीं देख सकते थे। एक बार सिद्धार्थ के चचेरे भाई देवदत्त ने तीर मारकर एक हंस को घायल कर दिया। उन्होंने घायल हंस की मरहम-पट्टी करके अपनी दयालुता और करुणा का प्रमाण दिया था। भगवान् बुद्ध की शिक्षा सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र से वेद और उपनिषद्‌ की शि...