फांसी से पहले अपराधी के कान में जल्लाद के शब्द
आपने कई बार अपराधियों को फांसी की सज़ा होते हुए सुना होगा। क्या आज तक कभी आपके मन में ये विचार आया है कि जब किसी अपराधी को फांसी की सजा सुनाई जाती है तो फांसी देने के ठीक पहले जल्लाद उसके कान में क्या कहता है।
फांसी के होते हैं कुछ नियम
किसी भी अपराधी को फांसी देते समय कुछ नियमों का पालन करना अतिआवश्यक होता है। उन नियमों का पालन ना करने पर फांसी की प्रक्रिया अधूरी मानी जाती है। आपने फिल्मों में अपराधी को फांसी देते हुए देखा ही होगा। आपने ध्यान दिया होगा कि फांसी देने से ठीक पहले जल्लाद अपराधी के कान में कुछ कहता है। आखिर जल्लाद ऐसा क्या और क्यों कहता है। यह हम आज जानेंगे।
फांसी देने की पूरी प्रक्रिया
दरअसल भारतीय दंड-संहिता के अनुसार सजा-ए-मौत के रूप में हमारे भारत देश में अपराधी को फांसी की सजा सुनाई जाती है। जिसके बाद न्यायाधीश के द्वारा पेन की निब को तोड़ दिया जाता है। जिसका मतलब होता हैं कि व्यक्ति का जीवन समाप्त हो गया है। अपराधी को जब फांसी दी जाती है तो उस समय वहां पर जेल अधीक्षक, एग्जिक्यूटिव मजिस्ट्रेट, जल्लाद और डाक्टर मौजूद होते हैं। इनके बिना अपराधी को फांसी कि सज़ा नहीं दी जा सकती है। फांसी देने से पहले जल्लाद अपराधी के सिर को काले कपड़े से ढक कर उसे फांसी का फंदा पहनाता है। अपराधी को फंदा पहनाने से पहले भी कुछ नियमों का पालन किया जाता हैं। जैसे- फंदा कैसा होना चाहिए, फांसी किस समय देनी है। ये सारी प्रक्रियाएं फांसी देने से पहले ही निर्धारित कर ली जाती हैं।
फंदे की बनावट
मनीला नामक रस्सी से फासी के फंदे को बनाया जाता हैं बिहार के बक्सर में इसकी मशीन हैं जिसकी मदद से फांसी के फंदे को बनाया जाता हैं। फांसी के फंदे को 20 फीट लम्बी रस्सी से बनाया जाता हैं। बक्सर जेल में रह रहे कैदियों को फांसी का फंदा बनाने का काम मिलता हैं फिर पुराने कैदी जेल में आये नए कैदियों को फांसी का फंदा बनाने सिखाते हैं। सबसे पहले फांसी की रस्सी को फिलीपिंस की राजधानी मनीला में बनाई जाती थी इसलिए इसका नाम मनीला रस्सी रखा गया हैं फिर उसके बाद इस रस्सी को बक्सर जेल में तैयार किया जाने लगा। यह प्रक्रिया अंग्रेजो के समय से ही होती रही हैं। फांसी की रस्सी को बनाने के लिए एक-एक कर के 18 धागे को बनाया जाता हैं फिर सभी धागे को पूरी तरह से मोम में भिगोया जाता हैं फिर उसके बाद सभी धागे को मिलाकर एक मोटी रस्सी को तैयार किया जाता हैं रस्सी को मजबूत को पूरी रात नमी में ओस में भिगोया जाता हैं ऐसा करने से रस्सी की मजबूती बढ़ जाती हैं।
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जल्लाद की भूमिका
जल्लाद एक सरकारी मुलाज़िम होता है। उसे सरकार से दिए गए निर्देशों का निर्वहन करना होता है। अपराधी को फांसी देना उसके काम का ही हिस्सा है। उसका अपना व्यक्तिगत इसमें कुछ नहीं होता है। वह अपने दिल पर पत्थर रखके यह काम करता है।
जल्लाद के आख़िरी शब्द
फांसी देने के दौरान जल्लाद चबूतरे से लगे लीवर को खींच देता है। चबूतरे से जुड़े लीवर को खींचने से पहले जल्लाद अपराधी के कान में कुछ कहता है। वो कहता हैं कि मुझे माफ़ कर दो। अगर अपराधी हिन्दू है तो जल्लाद उसके कान में राम-राम कहता है। और यदि अपराधी मुस्लिम है तो सलाम कहता है। और उसके बाद कहता है कि मैं अपने फ़र्ज़ के आगे मजबूर हूँ। मैं आपके सत्य के राह पर चलने की कामना करता हूँ।
अपराधी की अंतिम इच्छा
फांसी की सज़ा को सुबह होने से पहले ही दी जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता हैं ताकि जेल के कैदियों का कोई काम बाधित न हो। और रात में अपराधी को फांसी देने के बाद उसके परिवारी जनों को उसका अंतिम संस्कार करने का भी समय मिल जाए। और सबसे बड़ी वजह ये होती हैं कि अपराधी को पूरे दिन मौत का इंतजार न करना पड़े। फांसी देने से पहले कैदी को नहलाया जाता है। पहनने के लिए नए कपड़े दिए जाते हैं। और फिर उसे फांसी के फंदे तक लाया जाता है। फांसी देने से ठीक पहले अपराधी से उसकी अंतिम इच्छा पूछी जाती है। इनमें अच्छा खाना, अपने परिवार वालों से आखिरी बार मिलना या अन्य इच्छाएं शामिल होती हैं। जो भी इच्छा वो अपनी जिंदगी खत्म होने से पहले करना चाहता है उसे पूरा किया जाता है।
नहीं देखने दी जाती कोई तैयारी
राज्य सरकार के द्वारा फांसी का समय निर्धारित हो जाने के बाद जेल अधीक्षक अपराधी के परिवारी जनों को जा करके सूचित करता है। अपराधी को काल कोठरी से बाहर निकालते वक्त ही उसके चेहरे को काले कपड़े से ढक दिया जाता है। और उसके दोनों हाथो को पीछे से बांध दिया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि जिससे अपराधी फांसी की हो रही तैयारियों को देख न सके।
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